Russian Revolution during World War 1
रूस की क्रांति-07/11/1917
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सौ साल पहले एक ऐसी क्रांति हुई जिसका असर आज भी देखने को मिलता है। ये दुनिया की पहली ऐसी क्रांति थी जिसने सही मायने में समानता लाने का काम किया। ये थी 1917 की रूसी क्रांति। इससे पहले फ्रांस और अमेरिका में क्रांति हो चुकी थी लेकिन इसमें कई कमियां थी, जैसे अधिकार या तो पुरुषों को दिए गए या पैसे वालों को। ऐसे मे रूस में हुई क्रांति ही एकमात्र थी जिसमे लोगों को सभी अधिकार दिए गए।
रूस की क्रांति दो हिस्सों में हुई थी। एक फरवरी और दूसरी अक्टूबर में। इस क्रांति के पीछे बड़े कारण थे, जिन्हें समझना बेहद जरूरी है।
19वीं सदी जब शुरू हुई तो रूस पूरी तरह से कृषि प्रधान देश था। सत्ता में राजा का कब्जा था (इसको ज़ार कहा जाता था)। किसानों पर बड़े पैमाने पर टैक्स(कर) लगाए जाते थे। राजा के अलावा सरकार में बड़े घरानों और चर्च का दखल था।
रूस में उन दिनों उद्योग का विकास सिर्फ नाम भर के लिए था। इन्हीं कारणों से लोगों का जीवन स्तर सुधर नहीं रहा था। लोगों का रहन-सहन बहुत निचले स्तर का था। लोगों के पास बुनियादी सुविधाएं भी नहीं थी। छोटे घर थे वो भी गंदे इलाकों में। कहा जाए तो एक-एक घर में 12 से13 लोग रहते थे। इसके अलावा पानी जैसी मूलभुत सुविधाओं का भी आभाव था।
ये वो दौर था जब कई अलग-अलग विचारधाराएं सामने आ रही थीं। फ्रांस की क्रांति के बाद यूरोपीय देशों में लोकतंत्र पर भी जोर दिया जाने लगा। ऐसी सरकारों की मांग उठने लगी जो जनता के प्रति जवाबदेह हो। रूस तक ये बातें पहुंच रही थीं लेकिन यहां पर राजा की सत्ता को हिलाने का कोई विकल्प नहीं था। ब्रिटेन में राजशाही के साथ ही प्रधानमंत्री हुआ करते थे लेकिन रूस में ऐसा कुछ नहीं था। राजा के पास ही पूरी सत्ता थी। राजा पर किसी तरह का कोई अंकुश नहीं था। उसी दौर में रूस में एक नाम तेजी से सामने आने लगा… ये नाम था व्लादिमीर लेनिन। व्लादिमीर लेनिन मार्क्स की विचारधारा का समर्थक था
1894 में रूस को नया ज़ार मिला जिसका नाम था ज़ार निकोलस सेकेंड। बताया जाता है कि निकोलस और उनकी पत्नी रासपुतिन नाम के एक व्यक्ति से बेहद प्रभावित थे। कहा जाने लगा कि निकोलस की पत्नी के साथ रासपुतिन के अवैध संबंध हैं। रासपुतिन चर्च से जुड़ा हुआ आदमी था। वह अकसर दावे किया करता था कि वह सबकुछ कर सकता है। लेकिन जब निकोलस की पत्नी और रासपुतिन के संबंधों की बात सामने आई तो जनता के बीच गुस्सा देखने को मिला। वह राजा रानी से बेहद नाराज हए।
जब लेनिन ने सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी बनाई
इसके कुछ दिनों के बाद व्लादिमीर लेनिन ने सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी नाम की एक पार्टी की स्थापना की। ये मार्क्स की विचारधारा पर आधारित एक दल था जो समाजवाद की बात करता था। हालांकि व्लादिमीर लेनिन के कुछ तरीके मार्क्स से अलग रहे। इन्होंने मजदूरों के हक की लड़ाई लड़नी शुरू की। लेकिन साल 1903 में ये पार्टी टूट गई। इस पार्टी के दो हिस्से हुए। पहला बोलशेविक और दूसरा मेनशेविक।
व्लादिमीर लेनिन
मेनशिवक समूह का कहना था कि समाज में लोकतंत्र होना चाहिए, चुनाव होने चाहिए वहीं बोलशेविक लेनिन के दिखाए रास्ते पर चलते थे। व्लादिमीर लेनिन कहते थे कि सत्ता हमेशा मजदूरों के पास होनी चाहिए चुनाव करवाना जरूरी नहीं है। 1904-05 में रूस और जापान के बीच में एक युद्ध लड़ा गया। मंचुरिया और कोरिया को लेकर दोनों देशों के बीच युद्ध हुआ था। दोनों ही देश इन देशों पर कब्जा चाहते थे। लेकिन रूस युद्ध में बुरी तरह से हार गया। इस हार का असर देश की जनता पर पड़ा। बाहर से आने वाले सामान को रोक दिया गया। किसान और मजदूरों ने एक आंदोलन छेड़ दिया। अब ज़ार को अहसास हो गया था कि अगर उसने कुछ छूट नहीं दी तो सत्ता हाथ से जा सकती है। इसके बाद डूमा की स्थापना की गई।
रूस के पहले प्रधानमंत्री की राजा ने कराई हत्या
डूमा एक तरह से संसद थी जिसमें उच्च वर्ग के लोग सदस्य बनते थे। इनको कुछ अधिकार दिए गए। रूस में पहला प्रधानमंत्री बनाया गया। ये प्रधानमंत्री लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया। माना जाता है कि ज़ार निकोलस को डर हो गया था कि अगर उसने प्रधानमंत्री को नहीं रोका तो वह राजा के लिए खतरा बन जाएगा। इसलिए ज़ार ने ही प्रधानमंत्री की हत्या कर दी। ये घटना 1911 की है।
इसके बाद 1914 में शुरू हुआ पहला विश्व युद्ध। रूस को बुरी तरह से हार मिली। बड़ी संख्या में लोग मारे गए। खाने पानी के सामान की भी तंगी हो गई। लोग भूखे मरने लगे। अर्थव्यवस्था पर बड़ा संकट मंडराने लगा। विश्वयुद्ध के तीन सालों ने देश को पूरी तरह से तोड़ दिया था।
रूस में क्रांति
इसके बाद 1917 में रूसी क्रांति शुरू हुई। इसके दो हिस्से थे। क्रांति का पहला हिस्सा शुरू हुआ था फरवरी में। हालांकि अलग-अलग कैलेंडर के हिसाब से इनकी तारीखों में कई जगहों में मतभेद दिखता है। पहले रूस में जूलियन कैलेंडर चलता था। क्रांति के बाद ग्रैगोरियन कैलेंडर अपना लिया गया था। जूलियन कैलेंडर के हिसाब से क्रांति अक्टूबर में हई थी। लेकिन ग्रैगोरियन कैलेंडर के हिसाब से वो दिन 7 नवंबर था। क्रांति के पहले हिस्से में प्रदर्शन हुए। मजदूर हड़ताल पर चले गए। इसके बाद ज़ार ने सत्ता छोड़ दी और राजशाही खत्म हो गई। डूमा के पास सत्ता चली गई। सरकार बनाई गई लेकिन इसमें अधिकतर लोग मेनशेविक खेमे के थे।
इस खेमे ने दो गलतियां की थीं शायद इसके वजह से ही एक दूसरी क्रांति भी हुई।
1. सत्ता में आते ही इन्होंने चुनाव नहीं करवाए
2. सत्ता में काबिज होने के बाद भी विश्वयुद्ध से पीछ नहीं हटे।
लोगों के दिल में विश्वयुद्ध को लेकर बहुत गुस्सा था। पैसे और लोगों की कमी के कारण जनता चाहती थी कि सरकार युद्ध से पीछे हटे।
दूसरी क्रांति जिसने रूस को बदल दिया
दूसरी क्रांति शुरू हुई। बोलशेविक खेमे के लोग सरकार के खिलाफ उतर आए। सरकार ने बोलशेविक पार्टी को प्रतिबंधित कर दिया। बोलशेविक के नेताओं को जेल में डाल दिया। लेकिन कुछ ही दिनों में सेना ने सत्ता हासिल कर ली। सेना से बचने के लिए बोलशेविक खेमे को न्योता दिया गया क्योंकि बोलशेविक खेमे के पास रेड गार्ड थे जिन्हें हथियार चलाने आते थे और सत्ता को गलत हाथों में जाने से रोक सकते थे। इसके बाद लेनिन भी देश लौटे। जब बोलशेविक को प्रतिबंधित किया गया था तब व्लादिमीर लेनिन ने देश छोड़ दिया था। व्लादिमीर लेनिन ने लोगों के बीच जाकर शानदार भाषण दिए और सरकार को मजबूर कर दिया गया कि सरकार बदली जाए।
धीरे-धीरे बोलशेविकों ने सरकारी इमारतों में कब्जा करना शुरू कर दिया। इस तरह से सत्ता में बोलशेविक काबिज हो गए। ये रूसी क्राति थी जिसने रूस का भविष्य बदल कर रख गया। बोलशेविक सत्ता में आए और व्लादिमीर लेनिन सत्ता में आ गया।